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ग़ज़ल
ज़ोहद किस किस ने लुटाए हैं तुम्हें क्या मालूम
आज वो क्या नज़र आए हैं तुम्हें क्या मालूम
सैफ़ुद्दीन सैफ़
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ग़ज़ल
हुस्न है इश्क़-ए-आफ़रीं हुस्न पे दिल लुटाए जा
इश्क़ को दर्द-ए-दिल बना दर्द को दिल बनाए जा
बिस्मिल सईदी
नज़्म
वक़्त की क़द्र
ख़ुदाई हो कि ख़ुदा हो भुलाए बैठे हैं
सुरूर-ए-अहद-ए-जवानी लुटाए बैठे हैं
अख़्तर शीरानी
ग़ज़ल
जिन बुज़ुर्गों ने लुटाए जान-ओ-दिल इस्लाम पर
उन के बच्चों में ये ग़द्दारी कहाँ से आ गई