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नज़्म
कोई ये कैसे बताए
इस लुटे घर पे दिया करता है दस्तक कोई
आस जो टूट गई फिर से बंधाता क्यूँ है
कैफ़ी आज़मी
शेर
तू इधर उधर की न बात कर ये बता कि क़ाफ़िले क्यूँ लुटे
तिरी रहबरी का सवाल है हमें राहज़न से ग़रज़ नहीं
शहाब जाफ़री
नज़्म
लोग औरत को फ़क़त जिस्म समझ लेते हैं
लोग औरत को फ़क़त जिस्म समझ लेते हैं
रूह भी होती है उस में ये कहाँ सोचते हैं
साहिर लुधियानवी
समस्त
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नज़्म
ख़्वाब जो बिखर गए
जो मरहलों में साथ थे वो मंज़िलों पे छुट गए
जो रात में लुटे न थे वो दोपहर में लुट गए