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नज़्म
आज बाज़ार में पा-ब-जौलाँ चलो
हाकिम-ए-शहर भी मजमा-ए-आम भी
तीर-ए-इल्ज़ाम भी संग-ए-दुश्नाम भी
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
डूबने जाएगा शायद कोई मायूस विसाल
मजमा-ए-आम सुना है लब-ए-साहिल होगा
मिर्ज़ा अल्ताफ़ हुसैन आलिम लखनवी
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ग़ज़ल
कहूँ हसरतों का हुजूम क्या दर-ए-दिल तक आ के वो बेवफ़ा
मुझे ये सुना के पलट गया कि यहाँ तो मजमा-ए-आम है
साक़िब लखनवी
ग़ज़ल
ऐ दिल वालो घर से निकलो देता दावत-ए-आम है चाँद
शहरों शहरों क़रियों क़रियों वहशत का पैग़ाम है चाँद
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
दस्त-ए-तह-ए-संग
दीद-ए-बीना से बिस्मिल के अंजाम तक
मा'बदों की ख़मोशी से हंगामा-ए-मजमा'-ए-आम तक
इकराम ख़ावर
ग़ज़ल
देखा गया न मुझ से मआनी का क़त्ल-ए-आम
चुप-चाप मैं ही लफ़्ज़ों के लश्कर से कट गया