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ग़ज़ल
मुझ को मलामत-ए-ख़ल्क़ ख़ातिर में नाहीँ हरगिज़
ज़ुल्फ़ाँ की फ़िक्र में मैं दीवाना हो रहा हूँ
फ़ाएज़ देहलवी
ग़ज़ल
शुक्र-ए-ख़ुदा कि ज़ुल्म से मा'ज़ूर है फ़लक
बर्तानिया है ख़ल्क़ की ग़म-ख़्वार आज-कल
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
यार है ख़ंजर-ब-कफ़ और जाँ-निसारों का हुजूम
हाए ये किस जुर्म में ख़ल्क़-ए-ख़ुदा पकड़ी गई
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
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ग़ज़ल
तिरी तमन्ना न सह सकेगी मलामत-ए-शर्म-ए-ना-रसाई
ख़ुद अपने दामन को तू झुका दे कि थाम ले हाथ आरज़ू का
इज्तिबा रिज़वी
शेर
कुछ शेर-ओ-शायरी से नहीं मुझ को फ़ाएदा
इल्ला हुसूल-ए-काविश-ए-बे-जा-ए-ख़ल्क़ है