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नज़्म
ला-इलाहा-इल्लल्लाह
ये माल-ओ-दौलत-ए-दुनिया ये रिश्ता ओ पैवंद
बुतान-ए-वहम-ओ-गुमाँ ला-इलाहा-इल्लल्लाह
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ज़मीर-ए-पाक ओ निगाह-ए-बुलंद ओ मस्ती-ए-शौक़
न माल-ओ-दौलत-ए-क़ारूँ न फ़िक्र-ए-अफ़लातूँ
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ज़र-ओ-माल-ओ-जवाहर ले भी और ठुकरा भी सकता हूँ
कोई दिल पेश करता हो तो ठुकराना नहीं आता
अदीम हाशमी
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नज़्म
सरमाया-दारी
कहीं ये ख़ूँ से फ़र्द-ए-माल-ओ-ज़र तहरीर करती है
कहीं ये हड्डियाँ चुन कर महल ता'मीर करती है
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
उधर पिछले से अहल-ए-माल-ओ-ज़र पर रात भारी है
इधर बेदारी-ए-जम्हूर का अंदाज़ भी बदला