aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "manaayaa"
माया खन्ना राजे बरेलवी
born.1942
शायर
समीना रहमत मनाल
born.1976
मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी, भोपाल
पर्काशक
मध्य प्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, भोपाल
मजल्ला सफ़ीरे-सुख़न, पेशावर
माहनामा किताब नुमा, जामिया नगर, नई दिल्ली
अब्दुल मनाफ़ सौदागर
लेखक
एस. मन्नानी
के.सी. मलिय्या
अज़रा मनाज़
चुन्नी लाल मड़िया
माहनामा जमालिस्तान, दिल्ली
सय्यद शाह कमरुद्दीन हुसैन मुनीमी अज़ीम आबादी
सय्य मनल्लाह बिन सय्यद अली अल्लाह मोहम्मद अल-हुसैनी
माहनामा साहिल, यु.के
कुछ तो मिरे पिंदार-ए-मोहब्बत का भरम रखतू भी तो कभी मुझ को मनाने के लिए आ
माँ की दुआ न बाप की शफ़क़त का साया हैआज अपने साथ अपना जनम दिन मनाया है
बोले कोई हँस कर तो छिड़क देते हैं जाँ भीलेकिन कोई रूठे तो मनाया नहीं जाता
चलो कि ख़ाक उड़ाएँ चलो शराब पिएँकिसी का हिज्र मनाया नहीं बहुत दिन से
मैं ये सोच कर उस के दर से उठा थाकि वो रोक लेगी मना लेगी मुझ को
मनायाمنایا
persuaded, convinced
मनाइएمنائیے
please coax, appease, soothe
मानिएمانیے
except
accept, admit, agree, mind
मानिएمانئے
Mabada
जौन एलिया
काव्य संग्रह
उर्दू तर्जुमा फुतूहात-ए-मक्किया
मुहीउद्दीन इब्ने अरबी
सूफ़ीवाद / रहस्यवाद
Ahsanur Risala
अंदलीब शादानी
Maqala Nigari Ke Usool Ma Rahnuma-e-Mutala
अनुवाद
Urdu Mahiye Ke Khad-o-Khal
आरिफ़ फ़रहाद
माहिया
Imadut-Tahqeeq
कल्बे-आबिद
मज़ामीन / लेख
दुख लाल परिंदा है
अली मोहम्मद फ़र्शी
Rampur Mein Bachchon Ka Adab Aur Mahnama Noor
शाज़िया
शोध एवं आलोचना
माहाना रिसाइल के ख़ुसूसी शुमारे
ज़ियाउल्लाह खोखर
कैटलॉग / सूची
Ghazlain Nazmain Mahiye
हैदर क़ुरैशी
नज़्म
Imdad-us-Sulook Urdu
शैख़ क़ुतबुद्दीन दिमशक़ी
नक्शबंदिया
Bachchon Ka Mahnama Umang Ki Muntakhab Khaniyan
उर्दू अकादमी, दिल्ली
कहानी
Mazameer Yani Intikhab-e-Kalam-e-Meer Ma Muqaddama-o-Maqala
मीर तक़ी मीर
संकलन
Ishariya-e-Mahnama Maarif
यूसुफ़ फ़ातिहा ख़्वानी
मआरिफ़
Futoohat-e-Makkiya
हम दुनिया से जब तंग आया करते हैंअपने साथ इक शाम मनाया करते हैं
नए चराग़ जला याद के ख़राबे मेंवतन में रात सही रौशनी मनाया कर
मैं ने माना कि कुछ नहीं 'ग़ालिब'मुफ़्त हाथ आए तो बुरा क्या है
बिगड़ें न बात बात पे क्यूँ जानते हैं वोहम वो नहीं कि हम को मनाया न जाएगा
लाख मनाया लाख भुलायानैन कटोरे भर भर कर छलके
बस एक बार मनाया था जश्न-ए-महरूमीफिर उस के बाद कोई इब्तिला नहीं आई
फिर इस के बाद मनाया न जश्न ख़ुश्बू कालहू में डूबी थी फ़स्ल-ए-बहार क्या करते
हुक्म चुप्पी का हुआ शब तो सहर तक हम नेरतजगा ऐसा मनाया है कि जी जाने है
मैं अपनी ख़ुशियाँ अकेले मनाया करता हूँयही वो ग़म है जो तुझ से छुपा हुआ है मिरा
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