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ग़ज़ल
कहाँ मय-ख़ाने का दरवाज़ा 'ग़ालिब' और कहाँ वाइ'ज़
पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
वो मेरे सामने तूबा को क़द से माप चुके
उन्हों के नाम-ए-ख़ुदा ता-कमर नहीं आता