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ग़ज़ल
उस मक़ाम-ए-क़ुर्ब तक अब इश्क़ पहुँचा ही जहाँ
दीदा-ओ-दिल का भी अक्सर वास्ता होता नहीं
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
जिन को रह के काँटों में ख़ुश-मिज़ाज होना था
वो मक़ाम-ए-गुल पा कर बे-दिमाग़ हैं यारो
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
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ग़ज़ल
आले रज़ा रज़ा
ग़ज़ल
पोशीदा लफ़्ज़ लफ़्ज़ में है दास्तान-ए-कर्ब
'क़ुदसी' किताब-ए-ज़ीस्त का हर बाब देखना
औलाद-ए-रसूल क़ुद्सी
ग़ज़ल
बे-पर्दा आज निकलेगा पर्दा-नशीं मिरा
कर दे ये कोई महर-ए-मुनव्वर को इत्तिलाअ
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
नसीम-ए-सुब्ह भी लेती है याँ पे इज़्न-ए-ख़िराम
है ये मक़ाम मक़ाम-ए-क़रार-ए-निकहत-ए-गुल