aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "masKHara"
मतबा चामराज मस्कर, बैंगलोर
पर्काशक
तनज़ीम इसलाह-ए-मुआशरा, इलाहाबाद
इदारा इस्लाह मुआशरा, भोपाल
माशवरा बुक डिपो, दिल्ली
मैख़ाना-ए-उर्दू, दिल्ली
मयख़ान-ए-अदब, कराची
वो दीदा-वर हो कि शाएर कि मसख़रा कोईयहाँ सभी को तमाशा दिखा के चलना है
हम इतना हँस सकते हैंकि कोई मसख़रा या पागल
लोगों के फोड़ता फिरे शीशेमोहतसिब को तो मस्ख़रा कहिए
लोग हँसना न भूल जाएँ कहींसोच कर मस्ख़रा निकल आया
बहुत ही मसख़रा है वोचलो जाने भी दो कि आइना इंसान की फ़ितरत में शायद ढल गया होगा
अगर आपको बस यूँही बैठे बैठे ज़रा सा झूमना है तो शराब शायरी पर हमारा ये इन्तिख़ाब पढ़िए। आप महसूस करेंगे कि शराब की लज़्ज़त और इस के सरूर की ज़रा सी मिक़दार उस शायरी में भी उतर आई है। ये शायरी आपको मज़ा तो देगी ही, साथ में हैरान भी करेगी कि शराब जो ब-ज़ाहिर बे-ख़ुदी और सुरूर बख़्शती है, शायरी मैं किस तरह मानी की एक लामहदूद कायनात का इस्तिआरा बन गई है।
यहाँ हम इन अशआर का इन्तिख़ाब पेश कर रहे हैं जो ज़िंदगी करने की अलग अलग सूरतों में आपकी रहनुमाई करेंगे। ये मशवरे आम क़िस्म के मश्वरे नहीं हैं बल्कि ज़िंदगी की बुनियादी हक़ीक़तों और सच्चाइयों का शुऊर हासिल करने के बाद सामने आने वाले तजुर्बात हैं। आप इन्हें पढ़िए और ज़िंदगी के एक सबक़ के तौर पर इन्हें अख़ज़ कीजिए।
मसख़राمسخرہ
clown, joker
हंसोड़, हँसी ठठेवाला आदमी, भाँड, नक्ले करनेवाला, नक्क़ाल, विदूषक।।
मस्ख़रेمسخرے
Clowns; jokers
मस्ख़रीمسخری
joking, clowning
मस्ख़राمسخرا
jester, joker
मयख़ाना-ए-ख़य्याम
उमर ख़य्याम
रुबाई
मैख़ाना-ए-तग़ज़्ज़ुल
अता काकवी
संकलन
मय-ख़ाना तह-ए-हर्फ़
ताबाँ नक़वी अमरोहवी
अनुवाद
Islami Mushara Mein Masajid Ka Kirdar
मोहम्मद सऊद आलम क़ासमी
Tasawwuf Aur Hindustani Muashara
मुहिउद्दीन मुम्बई वाला
शोध / समीक्षा
मुफ़्त मश्वरा
रऊफ़ पारेख
बाल-साहित्य
Bagule Ka Mashwara
मिर्ज़ा मक़बूल बेग बदख़्शानी
कहानी
Bada-e-Makhmoor
मख़मूर देहलवी
काव्य संग्रह
Maikhana
प्रकाश पंडित
अशआर
Marxi Lenni Nazriya-e-Taraqqi
राजनीतिक आंदोलन
Islam Men Mashwara Ki Ahmiyat
हबीबुर्रहमान
Mashata-e-Sukhan
सफ़दर मिर्ज़ापुरी
Maikhana-e-Riyaz
तस्नीम मीनाई
शायरी तन्क़ीद
Islami Muaashara Aur Us Mein Khwateen Ka Hissa
मोहम्मद यूसुफ़ इस्लाही
इस्लामियात
Arbao Ki Nazar Mein Qadeem Hindustani Mazahib-o-Mashra
आबिदा ख़ातून
महिलाओं की रचनाएँ
फ़साना निस्फ़ ही ज़ाहिर है मेराहँसी में ग़म छुपाता मस्ख़रा हूँ
तमाम शहर की जब बे-हिसी हो सिक्का-ए-वक़्ततो मोल-तोल कोई मसख़रा ही तय करेगा
वो ख़ास कुर्सी नहीं हैकि जिस पर कोई मसख़रा बैठ जाए
एक था घोड़ा अजब निरालाबातें हवा से करने वाला
गर नहीं मसख़रा रक़ीब उस कूँलोग कवें रीश-ए-ख़ंद करते हैं
मुशायरों में हवा हूट जो मुसलसल मैंतो एक शख़्स ये बोला तू मस्ख़रा बन जा
शायर और मसख़रेएक जैसी कुर्सियों पर बैठते हैं
इक मस्ख़रा भी था साथ उन केआया था कहीं से हाथ उन के
मसख़रा था बादशह का इक ग़ुलामहो गया था वो बहुत ही नेक-नाम
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