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ग़ज़ल
अहसन अहमद अश्क
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ग़ज़ल
'अश्क' अपने सीना-ए-पुर-ख़ूँ में सैल-ए-अश्क भी
रोक रखता हूँ जिगर के ख़ून की तहलील तक
अश्क अमृतसरी
ग़ज़ल
दो बोल दिल के हैं जो हर इक दिल को छू सकें
ऐ 'अश्क' वर्ना शेर हैं क्या शाइरी है क्या
इब्राहीम अश्क
ग़ज़ल
ख़जिल हूँगा मता-ए-इश्क़ पर शायद किसी दिन
अभी इस फ़ैसले पर नाज़ करना चाहता हूँ
ग़ुलाम हुसैन साजिद
ग़ज़ल
काग़ज़-ए-अब्री पे लिख हाल-ए-दिल-ए-पुर-सोज़-ए-इश्क़
गिर्द उस के बर्क़ की तहरीर खींचा चाहिए
इश्क़ औरंगाबादी
ग़ज़ल
मता-ए-इश्क़ वो आँसू जो दिल में डूब गए
ज़मीं का रिज़्क़ जो आँसू निकल ही आते हैं