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नज़्म
हिर्स
औरों की क्या कहिए ख़ुद मेरा दिल भी अँगारों का मतबख़ है
सदा मिरी आँखों में इक वो कशिश दहकती है जो
मजीद अमजद
नज़्म
मेहमान-दारी
आती भी हैं जाती भी हैं बेगम सू-ए-मतबख़
मामाओं में बे-वक़्त जहाँ होती है चख़ चख़
अली मंज़ूर हैदराबादी
ग़ज़ल
गर सग-ए-गुरसिना ले शूम के मतबख़ की बास
तो भला हड्डी की जा क्या वो भंबोड़े पत्थर
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
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ग़ज़ल
नहीं जुज़ क़ुर्स मेहर-ओ-माह कुछ गर्दूं के मतबख़ में
सो वो भी एक नान-ए-सोख़्ता और एक आबी है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
नज़्म
मेरे भी हैं कुछ ख़्वाब
कुछ और मिरे ख़्वाब हैं कुछ और मिरा दौर
ख़्वाबों के नए दौर में ने मोर ओ मलख़ ने असद ओ सौर
नून मीम राशिद
नज़्म
होली
जब आई होली रंग-भरी सौ नाज़-ओ-अदा से मटक मटक
और घूँघट के पट खोल दिए वो रूप दिखला चमक चमक