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नज़्म
बाबा गुरु-नानक देव
मज़हब-ए-इंसानियत का पासबाँ कोई न था
कारवाँ लाखों थे मीर-ए-कारवाँ कोई न था
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
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ग़ज़ल
शहीद-ए-ग़ैरत-ए-इंसानियत के ज़ौक़ से पूछ
लहू बहा के जो पाई वो आबरू क्या है
सयय्द महमूद हसन क़ैसर अमरोही
ग़ज़ल
यहाँ तस्बीह का हल्क़ा वहाँ ज़ुन्नार का फंदा
असीरी लाज़मी है मज़हब-ए-शैख़-ओ-बरहमन में
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
अर्श मलसियानी
नज़्म
हम लोग
ज़मीर-ए-फ़ितरत-ए-इंसानियत को चौंका कर
उरूज-ए-क़िस्मत-ए-आदम दिखाएँगे हम लोग
अज़मत अब्दुल क़य्यूम ख़ाँ
नज़्म
‘अज़्म-ए-नौ
बे-इम्तियाज़-ए-मज़हब-ओ-मिल्लत
छुपा लेता है अपनी मख़मली पलकों की छाओं में