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ग़ज़ल
जीते जी ख़ुद से मोहब्बत में गुज़रना है मुझे
सूरत-ए-मौजा-ए-रवाँ मिट के उभरना है मुझे
ज़ाइक़ बैंग्लोरी
नज़्म
ऐ मेरे सारे लोगो
अब मिरे दूसरे बाज़ू पे वो शमशीर है जो
इस से पहले भी मिरा निस्फ़ बदन काट चुकी
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
बन के किस शान से बैठा सर-ए-मिंबर वाइ'ज़
नख़वत-ओ-उज्ब हयूला है तो पैकर वाइ'ज़
मोहम्मद ज़करिय्या ख़ान
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नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
दिल से जो बात निकलती है असर रखती है
पर नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
बे-वफ़ा कैसे बनूँ
ख़ल्वत-ए-ग़म के दरीचों पे ये दस्तक कैसी
ऐ मिरी फ़ख़्र-ए-वफ़ा रश्क-ए-चमन जान-ए-हया