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ग़ज़ल
मिस्ल-ए-परवाना खींची आती हैं उस की दीद को
देखने बेताब हैं माह-ए-दरख़्शाँ तितलियाँ
जमील अरशद खाँ अरशद
ग़ज़ल
हर नफ़स है शम्मा-ए-ग़म का शोला मैं जो कुछ कहूँ
मिस्ल-ए-परवाना मेरे अल्फ़ाज़ जलते जाएँगे
नातिक़ लखनवी
ग़ज़ल
यहीं हम ख़ाक हो जाएँगे जल कर मिस्ल-ए-परवाना
हमारी लाश भी ज़ालिम न इस महफ़िल से निकलेगी
फ़ज़ल हुसैन साबिर
ग़ज़ल
मिस्ल-ए-परवाना नहीं कुछ ज़र-ओ-माल अपने पास
हम फ़क़त तुम पे फ़िदा करने को जाँ रखते हैं
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
न जल के ख़ाक हो जब तक कि मिस्ल-ए-परवाना
हो तैश दिल का हमारे फ़रो तो क्यूँ-कर हो