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ग़ज़ल
फ़रेब-ए-ज़ार मोहब्बत-नगर खुला हुआ है
तुम्हारे ख़्वाब का मुझ पे असर खुला हुआ है
अब्दुर्राहमान वासिफ़
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नज़्म
क्लर्क का नग़्मा-ए-मोहब्बत
सब रात मिरी सपनों में गुज़र जाती है और मैं सोता हूँ
फिर सुब्ह की देवी आती है