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ग़ज़ल
लगाते हैं लबों पर मोहर-ए-अर्बाब-ए-ज़बाँ-बंदी
अली-'सरदार' की शान-ए-ग़ज़ल-ख़्वानी नहीं जाती
अली सरदार जाफ़री
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ग़ज़ल
दफ़्तर-ए-हुस्न पे मोहर-ए-यद-ए-क़ुदरत समझो
फूल का ख़ाक के तोदे से नुमायाँ होना
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
मोहर-ए-दस्त-आवेज़-ए-ग़म है हर बशर का दाग़-ए-ग़म
दिल है महज़र सोहबत-ए-गुम-कर्दा-ए-अहबाब का
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
क्यूँ क़ैद-ए-ख़ुम में दुख़्तर-ए-रज़ ही पड़ी रहे
ये मोहर-ए-रेसमान-ए-सरोकार तोड़िए
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
नज़्म
इक सितारा आदर्श का
थाह में डूबे हुए वो मेहर-ओ-माह
बन चुके होंगे ग़ुबार-ए-राएगाँ
शफ़ीक़ फातिमा शेरा
ग़ज़ल
वो दौर-ए-इश्क़ महज़ भी किया वक़्त था 'अज़ीम'
जब दिल पे नक़्श मोहर-ओ-निशान-ए-सितम न था
अज़ीम मुर्तज़ा
ग़ज़ल
कमंद-ए-हल्क़ा-ए-गुफ़तार तोड़ दी मैं ने
कि मोहर-ए-दस्त-ए-क़लमकार तोड़ दी मैं ने
तनवीर अहमद अल्वी
ग़ज़ल
फिर जो है बाग़-ए-नबुव्वत और इमामत की बहार
ग़ुंचा-ए-गुल सब्ज़ा-ए-अम्बर-फ़िशाँ को इश्क़ है