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ग़ज़ल
मुरीद-ए-मुर्शिद-ए-हिम्मत हूँ मैं मेरी तरीक़त में
कफ़न भी साथ लाना नंग है दुनिया-ए-फ़ानी से
तालिब अली खान ऐशी
ग़ज़ल
हिजाब-ए-राज़ फ़ैज़-ए-मुर्शिद-ए-कामिल से उठता है
नज़र हक़-आश्ना होती है पर्दा दिल से उठता है
शेर सिंह नाज़ देहलवी
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ग़ज़ल
वो मय दे दे जो पहले शिबली ओ मंसूर को दी थी
तो 'बेदम' भी निसार-ए-मुर्शिद-ए-मय-ख़ाना हो जाए
बेदम शाह वारसी
शेर
क्यूँकि होवे ज़ाहिद ख़ुद-बीं मुरीद-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार
उस ने सारी उम्र में ज़ुन्नार कूँ देखा न था
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
चलते हैं कू-ए-यार में है वक़्त-ए-इम्तिहाँ
हिम्मत न हारना दिल-ए-बीमार देखना