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ग़ज़ल
चैन से रहने न दे इन को न ख़ुद आराम कर
मुस्तइद हैं जो ख़िलाफ़त को मिटाने के लिए
सय्यद सादिक़ हुसैन
हास्य
कुछ मिसालें दे के समझाओ ये क़ौल-ए-मुस्तनद
इश्क़ अव्वल दर-दिल-ए-माशूक़ पैदा मी शुअद
दिलावर फ़िगार
ग़ज़ल
अगर कुछ होश हम रखते तो मस्ताने हुए होते
पहुँचते जा लब-ए-साक़ी कूँ पैमाने हुए होते
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
हम हैं ऐ यार चढ़ाए हुए पैमाना-ए-इश्क़
तिरे मतवाले हैं मशहूर हैं मस्ताना-ए-इश्क़