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ग़ज़ल
शाने की हर ज़बाँ से सुने कोई लाफ़-ए-ज़ुल्फ़
चीरे है सीना रात को ये मू-शिगाफ़-ए-ज़ुल्फ़
बहादुर शाह ज़फ़र
शेर
रुख़ से लहरा कर ज़नख़दाँ के हैं माइल मु-ए-ज़ुल्फ़
दौड़ता है चाह की जानिब ही प्यासा धूप में
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
नज़्म
तुलसीदास
इक तरफ़ उज़्लत में है नक़्क़ाद-ए-मा'नी मू-शिगाफ़
ये मआ'नी हैं मुआफ़िक़ वो मतालिब हैं ख़िलाफ़
जगत मोहन लाल रवाँ
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ग़ज़ल
ज़ख़्मों के मुँह शिगाफ़ हुए बू-ए-ज़ुल्फ़ से
रखता है मुश्क मरहम-ए-तेज़ाब का ख़वास
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
ग़ज़ल
हमारे हाथ इक मू गई नईं और पेच खाती है
वो दाम-ए-ज़ुल्फ़ में ताज़ा शिकार-ए-दिल फँसा शायद
वली उज़लत
ग़ज़ल
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
ले जा चुकी चमन में सबा बू-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार
सुम्बुल के सिलसिले को भी बरहम वो मू करें
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
नाज़-ए-आज़ादी 'हसन' वज्ह-ए-असीरी हो गया
मू-कशाँ दिल को ख़याल-ए-ज़ुल्फ़-ए-पैमाँ ले चला
हसन बरेलवी
ग़ज़ल
मू-ब-मू क्यूँ-कर न हो मुझ को गिरफ़्तारी-ए-ज़ुल्फ़
काफ़िर-ए-इश्क़-ए-बुताँ मैं एक और ज़ुन्नार सौ