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ग़ज़ल
साज़-ए-आलाम पे दिल नग़्मा-सरा होता है
ऐ मोहब्बत ये तिरे दौर में क्या होता है
प्रकाश नाथ प्रवेज़
ग़ज़ल
तुम्हें ख़बर ही नहीं ऐ तुयूरनग़्मा-ए-सरा
यही चमन यही ज़िंदाँ है देखिए क्या हो