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गीत
साहिर लुधियानवी
नज़्म
उर्दू
ये नाज़ों की पली थी 'मीर' के 'ग़ालिब' के आँगन में
जो सूरज बन के चमकी थी कभी महलों के दामन में
मंज़र भोपाली
ग़ज़ल
मोहब्बत थी उसे लेकिन मिरा इफ़्लास जब देखा
परेशाँ सी नज़र आई वो नाज़ों की पली मुझ को
क़तील शिफ़ाई
नज़्म
बरसात
वो दुआएँ मय-कशों की और वो लुत्फ़-ए-इंतिज़ार
हाए किन नाज़ों से चलती है हवा बरसात की
चकबस्त बृज नारायण
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नज़्म
बरसात
वो दुआएँ मय-कशों की और वो लुत्फ़-ए-इंतिज़ार
हाए किन नाज़ों से चलती है हवा बरसता की
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
बड़े नाज़ों से दिल में जल्वा-ए-जानाना आता है
ये घर जिस ने बनाया है वो वो साहब-ख़ाना आता है
क़द्र बिलग्रामी
ग़ज़ल
सजाया था जिसे पलकों पे नाज़ों से वही ख़्वाब
'सराहत' मेरी आँखों पर ज़रा सा बार भी था
सराहत अहमद सराहत
हास्य
नाज़ों से पली शहज़ादी हूँ मैं नारी महलों वाली हूँ
तुम जिस दवाम के क़ैदी हो संदूक़ों में डट जाते हो
ख़िज़र तमीमी
ग़ज़ल
अदा-ओ-नाज़ और अंदाज़ का शैदा न हो जाए
मिरा नाज़ों का पाला दिल कहीं उन का न हो जाए