aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "nuqta-e-nazar"
मैं अंधा था। लेकिन जब एक ब्रिटिश आई बंक से हासिल की हुई आँखें मेरे राकेट्स में फ़िट कर दी गईं तो मुझे दिखाई देने लगा और मैं सोचने लगा कि ग़ैरों का नुक़्ता-ए-नज़र अपना लेने से भी अंधापन दूर हो जाता है।...
حق نہ ملا نے کچھ بتایا صاف اور نہ صوفی نے کچھ دکھایا صاف...
अदब में नुक़्ता-ए-नज़र का मस्अला मेरे लिए दीन की सी हैसियत रखता है।...
चलो जी क़िस्सा-मुख़्तसरतुम्हारा नुक़्ता-ए-नज़र
ऐ 'नज़र' डर ख़िज़ाँ का घेरे हैजब कि शहर-ए-बहार में मैं हूँ
नुक़्ता-ए-नज़रنقطۂ نظر
point of view
Vedik Dharam Suwami Dayanand Saraswati Ke Nuqta-e-Nazar Se
ख़ालिद हामिदी
Shares Bazar Main Sarmaya Kari Maujooda Tareeqa-e-Kar Aur Islami Nuqta-e-Nazar
अब्दुल अज़ीम इसलाही
Nuqta-e-Nazar
आबिद हसन मन्टो
आलोचना
Kainat Mein Insan Ka Maqam Islami Nuqta-e-Nazar Se
मोहम्मद अलाउद्दीन सिद्दीक़ी
शोध
अब्दुल मुग़नी
इस्लाम का अख़लाक़ी नुक़्ता-ए-नज़र
सय्यद अबुल आला मोदूदी
इस्लामियात
Kainat Me Insan Ka Maqam
मोहम्मद तक़ी अमीनी
मज़ामीन / लेख
Shares Bazar Mein Sarmaya Kari Maujooda Tareeqa-e-Kar Aur Islami Nuqta-e-Nazar
Qaumi Milkiyyat
नईम सिद्दीक़ी
Urdu Novel Aur Khadeeja Mastoor Ka Insani Nuqta-e-Nazar
नसरीन तरन्नुम
Firqa Dari
ब्रिज नारायण
सांप्रदायिक सौहार्द्र
Bima-e-Zindagi Islami Nuqta-e-Nazar Se
अबू सलमान अल-हिन्दी
अर्थशास्त्र
Mushtaraka Khandani Nizam Aur Islami Nuqta-e-Nazar
उसामा शुऐब अलीग
Qaumi Taleem-o-Tarbiyat
फ़रज़ाना बेगम
एजुकेशन / शिक्षण
बारूद से न बच सका वो ख़ुद भी ऐ 'नज़र'ये खेल उस की मौत का सामान बन गया
हर क़दम पर साथ मेरे लग़्ज़िशों की भीड़ थीचश्म-ए-बालिग़ से उन्हें सर्फ़-ए-नज़र उस ने किया
तलाश-ए-रिज़्क़ में खाते हैं धूल शहरों कीहुई थी शाम 'नज़र' हम भी घर गए होते
कौन पाएगा ताब-ए-नज़्ज़ाराउन की अबरू कमान होती है
उनवाँ हर आरज़ू का ब-शर्त-ए-नज़र हुआअफ़्साना ख़त्म सब का तिरे नाम पर हुआ
जिस जगह कि लुटते हैं क़ाफ़िले मोहब्बत केऐ 'नज़र' सुनो अपना उस जगह बसेरा है
ऐ 'नज़र' मोहब्बत में ग़म से हारना कैसाजिस तरह भी मुमकिन हो ज़िंदगी बितानी है
कोई तो आए नज़र ख़ून-ए-जिगर का लम्हाएक मिसरा तो कभी 'मीर' के जैसा लिख्खूँ
फ़क़ीह-ए-शहर से क़त-ए-नज़र कभी तो 'नज़र'तू मेरे अश्क की बे-हर्फ़ दास्ताँ में उतर
हम पर ये सख़्ती की नज़र हम हैं फ़क़ीर-ए-रहगुज़ररस्ता कभी रोका तिरा दामन कभी थामा तिरा
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