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नज़्म
दरख़्त-ए-ज़र्द
ये ज़ालिम तीसरा पैग इक अक़ानीमी बिदायत है
उलूही हर्ज़ा-फ़रमाई का सिर्र-ए-तूर-ए-लुक्नत है
जौन एलिया
नज़्म
होली
ये हल्के शीशों के गिलास और ये नए हल्के से पैग
जिन पर लिखा है ये बने थे मुल्क-ए-इंग्लिस्तान में
अली जवाद ज़ैदी
नज़्म
मौत का दूसरा नाम
मैं उसे जानता हूँ
कई बार दो-चार पैग उस के हमराह भी पी चुका हूँ
मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
नज़्म
देर-सवेर तो वैसे भी हो जाती है
ताज़ा पैग उठाया होगा
देर-सवेर तो वैसे भी हो जाती है
फ़िरोज़ नातिक़ ख़ुसरो
नज़्म
इंतिसाब
दूसरी मालिये के बहाने से सरकार ने काट ली है
जिस की पग ज़ोर वालों के पाँव-तले
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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ग़ज़ल
आज ज़रा ललचाई नज़र से उस को बस क्या देख लिया
पग-पग उस के दिल की धड़कन उतरी आए पायल में
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
तुम ऐसा नादान जहाँ में कोई नहीं है कोई नहीं
फिर इन गलियों में जाते हो पग पग ठोकर खाते हो
हबीब जालिब
ग़ज़ल
तोड़ के नाता हम-सजनों से पग पग वो पचताए हैं
जब जब उन से आँख मिली है तब तब वो शरमाए हैं
जमील अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
अब चलना है तो चलना है क्या पाँव के छालों को देखें
इस धरती की पग-डंडी से कोई ठिकाना पा जाएँ
सालिक लखनवी
नज़्म
बगिया लहूलुहान
पग पग मौत के गहरे साए जीवन मौत समान
चारों ओर हवा फिरती है ले के तीर कमान
हबीब जालिब
ग़ज़ल
पग पग काँटे मंज़िलों सहरा कोसों जंगल बेले हैं
सफ़र-ए-ज़ीस्त कठिन है यारो राह में लाख झमेले हैं
अफ़ज़ल परवेज़
ग़ज़ल
राह दुश्वार है पग पग पे हैं काँटे लेकिन
राह-रौ के लिए मंज़िल का इशारा है बहुत