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नज़्म
नया साल
क़दम उठते हैं तो ज़र्रे भी सदा देने लगे
दर्द के पैरहन-ए-चाक से झाँको तो ज़रा
अहमद नदीम क़ासमी
शेर
तेरे ख़ुश-पोश फ़क़ीरों से वो मिलते तो सही
जो ये कहते हैं वफ़ा पैरहन-ए-चाक में है
सय्यद आबिद अली आबिद
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ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
तेरे ख़ुश-पोश फ़क़ीरों से वो मिलते तो सही
जो ये कहते हैं वफ़ा पैरहन-ए-चाक में है
सय्यद आबिद अली आबिद
ग़ज़ल
अहद-ए-वफ़ा को तोड़ के हम भी हैं मुज़्महिल
तुम भी उधर हो चाक गरेबाँ किए हुए