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नज़्म
बरसात की बहारें
मारे हैं मौज डाबर दरिया दौंड़ रहे हैं
मोर-ओ-पपीहे कोयल क्या क्या रुमंड रहे हैं
नज़ीर अकबराबादी
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ग़ज़ल
पी पी पपीहे बोलते होंगे कानों में रस घोलते होंगे
ठुमरी होगी कोयल की कू कजरी कागा की काओं रे
ग़ौस सीवानी
नज़्म
ऊँचे दर्जे का सैलाब
जहाँ जंगल हुआ करते थे और बारिश धनक ले कर उतरती थी
जहाँ बरसात में कोयल, पपीहे चहचहाते थे
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
नज़्म
तौबा-नामा
दूर से ज़ालिम पपीहे की सदा आती हुई
पय-ब-पय कम-बख़्त पी-पी कह कर उकसाती हुई
हफ़ीज़ जालंधरी
नज़्म
नज़्र-ए-फ़िराक़
दान के पैसे गिनता पंडित ताँबा सूरज सांझी का
जमुना पर मीनार क़िला के गुम्बद का तिरछा साया
फ़हमीदा रियाज़
नज़्म
बरसात की रुत आई
मौसम की जवानी फिर जादू सा जगाती है
आवाज़ पपीहे की फिर होश उड़ाती है