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ग़ज़ल
खालिद इरफ़ान
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शेर
मुर्तज़ा बरलास
नज़्म
गाँधी के बा'द
दिल ही अफ़्सुर्दा हो जब पेशकश-ए-सहबा क्या
आँख ही जब न रहे दावत-ए-नज़्ज़ारा क्या
इज़हार मलीहाबादी
ग़ज़ल
मिट्टी में क्या धरी थी कि चुपके से सौंप दी
जान-ए-अज़ीज़ पेशकश-ए-नामा-बर ग़लत
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
ग़ज़ल
हुस्न के आस्ताने पर नासिया रख के भूल जा
फ़िक्र-ए-क़ुबूल-ओ-रद न कर पेश-कश-ए-नियाज़ में
जिगर बरेलवी
ग़ज़ल
नहीं अब कसरत-ए-दाग़-ए-जुनूँ से लाएक़-ए-हदिया
कभी दिल पेशकश करने के क़ाबिल हम भी रखते थे