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ग़ज़ल
इतनी जो अज़िय्यत उसे देता है तू हर दम
क्या क़ाबिल-ए-जौर-ओ-सितम ऐ यार वही है
ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी
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विषय
क़ातिल
क़ातिल शायरी
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शेर
तू याद आया तिरे जौर-ओ-सितम लेकिन न याद आए
मोहब्बत में ये मा'सूमी बड़ी मुश्किल से आती है
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
फ़लक ये जौर-ओ-सितम मुझ से ना-तवाँ के लिए
मैं ही था क्या तिरे ज़ुल्मों के इम्तिहाँ के लिए