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ग़ज़ल
पिलाया उस ने जब से शर्बत-ए-दीदार चुटकी में
नुमायाँ हैं तभी से इश्क़ के आसार चुटकी में
मुनीर अरमान नसीमी
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ग़ज़ल
आँखें फोड़ उस की जो देखे बे-इजाज़त मुँह तिरा
शौक़ से ऐ मस्त जाम-ए-शर्बत-ए-दीदार तोड़
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
हौज़-ए-कौसर की नहीं चाह-ए-ज़नख़दाँ की क़सम
तिश्ना-ए-शर्बत-ए-दीदार हूँ किन का उन का
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
देख हमारी दीद के कारन कैसा क़ाबिल-ए-दीद हुआ
एक सितारा बैठे बैठे ताबिश में ख़ुर्शीद हुआ
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
जब जलते पतंगों को देखा 'दीदार' तो ये मालूम हुआ
आग़ाज़-ए-मोहब्बत ठीक तो है अंजाम-ए-मोहब्बत ठीक नहीं
दीदार बस्तवी
ग़ज़ल
कोई 'फ़ज़ा' तो मिले हम को क़ाबिल-ए-परवाज़
अब इन हदों में भला बाल-ओ-पर कहाँ खोलें