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ग़ज़ल
वो क्या दिन थे जो क़ातिल-बिन दिल-ए-रंजूर रो देता
मिरा हर ज़ख़्म जूँ वो तेग़ होती दूर, रो देता
वली उज़लत
कुल्लियात
मुग़ाँ मुझ मस्त बिन फिर ख़ंदा-ए-साग़र न होवेगा
मय-ए-गुलगूँ का शीशा हिचकियाँ ले ले के रोवेगा
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
क़ातिल से गर न मिलिए तो 'जुरअत' हमारी क्या
जूँ गुल शगुफ़्ता हो न कोई ज़ख़्म खाए बिन
जुरअत क़लंदर बख़्श
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विषय
क़ातिल
क़ातिल शायरी
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ग़ज़ल
तुम पूछो और मैं न बताऊँ ऐसे तो हालात नहीं
एक ज़रा सा दिल टूटा है और तो कोई बात नहीं
क़तील शिफ़ाई
नज़्म
दिल-ए-पुर-ख़ूँ
दिल बहुत दुखता है हर बात पे दिल दुखता है
सुब्ह-ए-नौ-ख़ेज़ पे सूरज की जहाँबानी पे