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ग़ज़ल
अजब क्या इस क़रीने से कोई सूरत निकल आए
तिरी बातों को ख़्वाबों से मिला कर देख लेता हूँ
अहमद मुश्ताक़
नज़्म
सफ़र के वक़्त
है तुम को तैश है बालिशतियों की ये दुनिया
तो फिर क़रीने से तुम उन को बे-लिबास करो
जौन एलिया
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नज़्म
हमेशा देर कर देता हूँ
हमेशा देर कर देता हूँ मैं हर काम करने में
ज़रूरी बात कहनी हो कोई वा'दा निभाना हो
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
ऐ नए साल बता तुझ में नया-पन क्या है
अगले बरसों की तरह होंगे क़रीने तेरे
किसे मालूम नहीं बारह महीने तेरे