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शेर
जो रंग-ए-इश्क़ से फ़ारिग़ हो उस को दिल नहीं कहते
जो मौजों से न टकराए उसे साहिल नहीं कहते
वासिफ़ देहलवी
हिंदी ग़ज़ल
न शम्अ है न परवाने ये कैसा रंग-ए-महफ़िल है
कि मातम आ गया शहनाइयों तक तुम नहीं आए
बलबीर सिंह रंग
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ग़ज़ल
'अश्क' अपने सीना-ए-पुर-ख़ूँ में सैल-ए-अश्क भी
रोक रखता हूँ जिगर के ख़ून की तहलील तक
अश्क अमृतसरी
ग़ज़ल
दो बोल दिल के हैं जो हर इक दिल को छू सकें
ऐ 'अश्क' वर्ना शेर हैं क्या शाइरी है क्या