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ग़ज़ल
ताबिंदा हुस्न-ए-राज़-ए-बहाराँ हमीं से है
नज़्म-ए-ख़िज़ाँ जो है तो हिरासाँ हमीं से है
अर्श सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
हम और रस्म-ए-बंदगी आशुफ़्तगी उफ़्तादगी
एहसान है क्या क्या तिरा ऐ हुस्न-ए-बे-परवा तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
बशीरुद्दीन राज़
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ग़ज़ल
जो हैं मारे हुए रंज-ओ-ग़म-ओ-आलाम के ऐ 'राज़'
उन्हें मय-ख़ाने में इक जाम उठाने की ज़रूरत है
राज़ लाइलपूरी
ग़ज़ल
जहाँ शर्मिंदा-ए-ताबीर है फ़ितरत ज़माने की
ख़ुलूस-ए-आदमियत 'राज़' लाई है वहाँ मुझ को
दाऊद ख़ाँ राज़
ग़ज़ल
निगाह-ए-शौक़ वक़्फ़-ए-हुस्न-ए-फ़ितरत होती जाती है
तबीअ'त महरम-ए-राज़-ए-मोहब्बत होती जाती है
राज़ चाँदपुरी
ग़ज़ल
आदमी पर राज़-ए-हुस्न-ए-बे-निशाँ क्यों कर खुले
जिस क़दर ज़ाहिर हुआ उतना ही पिन्हाँ हो गया