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ग़ज़ल
रफ़्तार-ओ-तौर-ओ-तर्ज़-ओ-रविश का ये ढब है क्या
पहले सुलूक ऐसे ही तेरे थे अब है क्या
मीर तक़ी मीर
कुल्लियात
रफ़्तार-ओ-तौर-ओ-तर्ज़-ओ-रविश का ये ढब है क्या
पहले सुलूक ऐसे ही तेरे थे अब है क्या
मीर तक़ी मीर
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ग़ज़ल
तू ऐ दोस्त कहाँ ले आया चेहरा ये ख़ुर्शीद-मिसाल
सीने में आबाद करेंगे आँखों में तो समा न सके
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
चराग़-ए-ज़िंदगी है या बिसात-ए-आतिश-ए-रफ़्ता
जला कर रौशनी दहलीज़-ए-जाँ पर सोचते रहना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
बार-हा जी में ये आई उम्र-ए-रफ़्ता से कहूँ
शाम होने को है ऐ भूले मुसाफ़िर घर तो आ
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
ख़ाल-ओ-ख़त के वरक़ लम्हा-ए-रफ़्ता कब का चुरा ले गया
क्या छुपाते हैं अब मेरी बे-चेहरगी की ख़बर आइने
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
अगर ज़बाँ से बयाँ हाल-ए-ग़म न हो पाया
हुज़ूर-ए-दोस्त मिरी ख़ामुशी ने साथ दिया