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ग़ज़ल
कू-ए-जानाँ में उसे है सज्दा-रेज़ी का जो शौक़
मेरी पेशानी रहीन-ए-नक़्श-ए-पा हो जाएगी
हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा
नज़्म
त'आरुफ़
नहीं मुमकिन मिटाना मुझ को मिस्ल-ए-नक़श-ए-पा यारो
ख़लाओं में रहूँगा गूँजता बन कर सदा यारो
सदा अम्बालवी
नज़्म
नक़्श-ए-पा
ये नीम-ख़्वाब घास पर उदास उदास नक़्श-ए-पा
कुचल रहा है शबनमी लिबास की हयात को
अख़्तरुल ईमान
ग़ज़ल
राह में सूरत-ए-नक़्श-ए-कफ़-ए-पा रहता हूँ
हर घड़ी बनने बिगड़ने को पड़ा रहता हूँ
मुनीर शिकोहाबादी
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