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शेर
मस्जिद में तुझ भँवों की ऐ क़िबला-ए-दिल-ओ-जाँ
पलकें हैं मुक़तदी और पुतली इमाम गोया
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
तक़ाज़ा-ए-दिल-ओ-जाँ का कहीं दरमाँ नहीं मिलता
दयार-ए-दर्द में तस्कीन का सामाँ नहीं मिलता
अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद
ग़ज़ल
हम जो दिन-रात ये इत्र-ए-दिल-ओ-जाँ खींचते हैं
नफ़अ' कम करते हैं ऐ यार ज़ियाँ खींचते हैं