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ग़ज़ल
शौक़ है सामाँ-तराज़-ए-नाज़िश-ए-अरबाब-ए-अज्ज़
ज़र्रा सहरा-दस्त-गाह ओ क़तरा दरिया-आश्ना
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
वादी-ए-शौक़ में जो शो'ला-ब-दामाँ निकला
वाक़िफ़-ए-रस्म-ओ-रह-ए-कूचा-ए-जानाँ निकला
सय्यद सिद्दीक़ हसन
नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
दिल से जो बात निकलती है असर रखती है
पर नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है
अल्लामा इक़बाल
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नज़्म
आज के दिन
कौन सी बज़्म है जिस में नहीं सामान-ए-तरब
है बशर कौन जो शादान न हो आज के दिन
बसंत लखनवी
नज़्म
हम्द गाती है ज़मीं
मालिक-ए-अर्ज़-ओ-समा को याद करता है जहाँ
हम्द गाती है ज़मीं तस्बीह पढ़ता आसमाँ
मोहम्मद असदुल्लाह
ग़ज़ल
नग़्मों का असर होता है अर्बाब-ए-तरब पर
'नाज़िर' को रुला देती है ज़ंजीर की आवाज़
नाजिर अल हुसैनी
ग़ज़ल
नक़्श-ए-हैरत हैं मिरे अहबाब तारों की तरह
सब की आँखें हैं खुली पर देखता कोई नहीं