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ग़ज़ल
जज़्बा-ए-सब्र-ओ-शुक्र मेरे काम आ गया
क्या था जो मेरे बख़्त में लिक्खा गया नहीं
जगदीश मेहता दर्द
ग़ज़ल
तल्क़ीन-ए-सब्र-ओ-शुक्र है वाइज़ का मश्ग़ला
क्या उस की गुफ़्तुगू है नहूसत लिए हुए
मुमताज़ अहमद ख़ाँ ख़ुशतर खांडवी
ग़ज़ल
तल्क़ीन-ए-सब्र-ओ-शुक्र ज़बाँ पर है रात दिन
दिल को मगर मता'-ए-फ़ुज़ूँ की तलाश है
काैसर परवीन काैसर
ग़ज़ल
मय-ओ-माशूक़ से क्या बात कुछ मतलब नहीं रखते
बताओ तो कहाँ के 'सब्र' ऐसे पारसा तुम हो
अबुल बक़ा सब्र सहारनपुरी
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ग़ज़ल
उतर जाता है रफ़्ता रफ़्ता सब नश्शा जवानी का
चला जाता है ख़ुद रंज-ए-ख़ुमार आहिस्ता आहिस्ता
अबुल बक़ा सब्र सहारनपुरी
ग़ज़ल
'सब्र' हंगाम-ए-तलब शर्त है निय्यत में ख़ुलूस
जाएगी बाब-ए-इजाबत पे दुआ तीसरे दिन
अबुल बक़ा सब्र सहारनपुरी
ग़ज़ल
अह्द-ए-पीरी में हुए अपने जो सब बाल सफ़ेद
हम ये समझे कि हुआ नामा-ए-आमाल सफ़ेद
अबुल बक़ा सब्र सहारनपुरी
ग़ज़ल
सद-शुक्र बंदा हिर्स-ओ-हवा का नहीं हूँ मैं
हमराह ले के जाऊँगा दो गज़ कफ़न तमाम
अबुल बक़ा सब्र सहारनपुरी
ग़ज़ल
शुक्र है मौत भी आई मिरी मयख़ाने में
होश में आया न मैं मस्त-ए-ख़राब आख़िर-कार
अबुल बक़ा सब्र सहारनपुरी
ग़ज़ल
तू चाहता है अगर सब्र-ओ-शुक्र की दौलत
फ़क़ीर लोगों की सोहबत में दिन गुज़ारा कर