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ग़ज़ल
मंज़िल-ए-शब से गुज़र कर सुब्ह तक आते हैं लोग
रौशनी बन कर अँधेरों में उतर जाते हैं लोग
सिराज आज़मी
ग़ज़ल
ये समझ लो नाशनास-ए-रह-ए-मंज़िल-ए-वफ़ा है
जो क़दम क़दम पे पूछे अभी कितना फ़ासला है
मख़्दूम ज़ादा मुख़्तार उस्मानी
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शेर
बताए कौन किसी को निशान-ए-मंज़िल-ज़ीस्त
अभी तो हुज्जत-ए-बाहम है रहगुज़र के लिए
हबीब अहमद सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
जफ़ा-ए-दोस्त बनी रहनुमा-ए-मन्ज़िल-ए-दोस्त
वो खो रहे हैं मुझे उन को पा रहा हूँ मैं
ताजवर नजीबाबादी
ग़ज़ल
तलाश-ए-मंज़िल-ए-राहत में हम जहाँ गुज़रे
फ़रेब-ख़ुर्दा उमीदों के दरमियाँ गुज़रे
होश नोमानी रामपुरी
शेर
निशान-ए-मंज़िल-ए-जानाँ मिले मिले न मिले
मज़े की चीज़ है ये ज़ौक़-ए-जुस्तुजू मेरा