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ग़ज़ल
अब न वो मैं न वो तू है न वो माज़ी है 'फ़राज़'
जैसे दो शख़्स तमन्ना के सराबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
उड़ते फिरते हैं ख़लाओं में सहाबों की तरह
ये वो नाले हैं कि जो ज़ेर-ए-ज़मीं जाते नहीं
अब्दुल मन्नान समदी
समस्त
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ग़ज़ल
तुझे चाँद बन के मिला था जो तिरे साहिलों पे खिला था जो
वो था एक दरिया विसाल का सो उतर गया उसे भूल जा
अमजद इस्लाम अमजद
नज़्म
ये महलों ये तख़्तों ये ताजों की दुनिया
ये महलों ये तख़्तों ये ताजों की दुनिया
ये इंसाँ के दुश्मन समाजों की दुनिया