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ग़ज़ल
कौन सा ग़म है मिरे दिल में जो मेहमान नहीं
मुझ पे कम ये भी मिरे यारों का एहसान नहीं
इन्तेसार हुसैन आबिदी शाहिद
ग़ज़ल
जौर-ओ-बे-मेहरी-ए-इग़्माज़ पे क्या रोता है
मेहरबाँ भी कोई हो जाएगा जल्दी क्या है