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नज़्म
लहू का सुराग़
कहीं नहीं है कहीं भी नहीं लहू का सुराग़
न सर्फ़-ए-ख़िदमत-ए-शाहाँ कि ख़ूँ-बहा देते
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
हम को ख़याल-ए-ख़िदमत-ए-अह्ल-ए-जहाँ तो है
ताक़त नहीं है पाँव में मुँह में ज़बाँ तो है
मुसव्विर लखनवी
शेर
किसे फ़ुर्सत कि फ़र्ज़-ए-ख़िदमत-ए-उल्फ़त बजा लाए
न तुम बेकार बैठे हो न हम बेकार बैठे हैं
आज़ाद अंसारी
नज़्म
गाँधी
ऐ रहनुमा-ए-हिन्द ऐ ख़िदमत-गुज़ार-ए-क़ौम
नक़्श-ए-क़दम तिरे हैं ज़माने में यादगार
धर्मपाल आक़िल
ग़ज़ल
हर चीज़ की गिरानी ने वीरान कर दिया
सर्फ़-ए-ख़िज़ाँ है हिन्द का गुलज़ार आज-कल
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
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ग़ज़ल
जब सर्फ़-ए-गुफ़्तुगू हूँ तो देखे उन्हें कोई
मंज़ूर हो जो अब्र-ए-गुहर-बार देखना
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
ख़याल-ए-ख़िदमत-ए-ख़ल्क़-ए-ख़ुदा दिया तू ने
मुझे हयात का मक़्सद बता दिया तू ने
रंगेशवर दयाल सक्सेना सूफ़ी
ग़ज़ल
ख़याल-ए-ख़िदमत-ए-ख़ल्क़-ए-ख़ुदा जो रखते हैं
करम ख़ुदा का उन्हें दस्तियाब होता है
रंगेशवर दयाल सक्सेना सूफ़ी
शेर
आख़िर गिल अपनी सर्फ़-ए-दर-ए-मय-कदा हुई
पहुँचे वहाँ ही ख़ाक जहाँ का ख़मीर हो
मिर्ज़ा जवाँ बख़्त जहाँदार
शेर
लहू जिगर का हुआ सर्फ़-ए-रंग-ए-दस्त-ए-हिना
जो सौदा सर में था सहरा खंगालने में गया