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ग़ज़ल
उन से बहार ओ बाग़ की बातें कर के जी को दुखाना क्या
जिन को एक ज़माना गुज़रा कुंज-ए-क़फ़स में राम हुए
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
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ग़ज़ल
आज भी हैं वो सुलगे सुलगे तेरे लब ओ आरिज़ की तरह
जिन ज़ख़्मों पर पंखा झलते एक ज़माना बीत गया
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
'बेबाक' मिटा सकता नहीं हम को ज़माना
हम हक़ के लिए बर-सर-ए-पैकार रहे हैं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
फ़ी-ज़माना है यही मस्लहत-ए-अक़्ल-ओ-शुऊर
दिल में ख़्वाहिश कोई उभरे तो दबा ली जाए
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
रंज-ओ-ख़ुशी 'सरताज' बहम हैं ये दुनिया की महफ़िल है
ग़म की तानें कहीं पे जागें शोर कहीं शहनाई का
सरताज आलम आबिदी
ग़ज़ल
ठिकाना याद-ए-माज़ी का अगर है तो मिरा दिल है
कहाँ पर जाएँगी 'सरताज' वो दिल से जुदा हो कर