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नज़्म
मशरिक़ हार गया
'टीपू' और झांसी-की-रानी की हार नहीं है
सन-सत्तावन की जंग-ए-आज़ादी की हार नहीं है
सलीम अहमद
नज़्म
सुभाष-चंद्र-बोस बहादुर-शाह-ज़फ़र के मज़ार पर
मेरे दिल को याद है अब तक वो सत्तावन की जंग
जिस के बा'द इस सरज़मीं पे छा गए अहल-ए-फ़रंग
जगन्नाथ आज़ाद
नज़्म
लेव तोलस्तोय
सन सतावन में लड़ी हम ने जो आज़ादी की जंग
उस से वाबस्ता रही थी तोलस्तोय की उमंग
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
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नज़्म
दरख़्त-ए-ज़र्द
न पैराहन न पूरी आधी रोटी अब रहा सालन
ये साले कुछ भी खाने को न पाएँ गालियाँ खाएँ
जौन एलिया
ग़ज़ल
किस को ख़बर थी साँवले बादल बिन बरसे उड़ जाते हैं
सावन आया लेकिन अपनी क़िस्मत में बरसात नहीं
क़तील शिफ़ाई
नज़्म
ए'तिराफ़
मेरे वादों से डरो मेरी मोहब्बत से डरो
अब मैं अल्ताफ़ ओ इनायत का सज़ा-वार नहीं
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
बीत गया सावन का महीना मौसम ने नज़रें बदलीं
लेकिन इन प्यासी आँखों से अब तक आँसू बहते हैं
हबीब जालिब
शेर
कब लौटा है बहता पानी बिछड़ा साजन रूठा दोस्त
हम ने उस को अपना जाना जब तक हाथ में दामाँ था
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
इस बस्ती के इक कूचे में
इक रोज़ मगर बरखा-रुत में वो भादों थी या सावन था
दीवार पे बीच समुंदर के ये देखने वालों ने देखा
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
फ़रमान-ए-ख़ुदा
हक़ रा ब-सजूदे सनमाँ रा ब-तवाफ़े
बेहतर है चराग़-ए-हरम-ओ-दैर बुझा दो