aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "shaam-e-aish"
ऐ 'ऐश' है फ़र्सूदा अब क़ैस का अफ़्सानाउल्फ़त तो किसी की भी जागीर नहीं होती
हर रविश उन की क़यामत है क़यामत ऐ 'ऐश'जिस तरफ़ जाते हैं इक हश्र बपा होता है
ऐ 'ऐश' जब से बादा-ए-ला-तक़्नतू मिलाबाक़ी रहा न डर हमें रोज़-ए-हिसाब का
हर बज़्म-ए-नशात ऐ 'ऐश' हुई उस शोख़ के जलवों से रौशनकाशाना-ए-ग़म में जल्वा-फ़गन लेकिन वो दिल-आरा हो न सका
एक दीवार-ए-जिस्म बाक़ी हैअब उसे भी गिरा दिया जाए
लखनवी शाइ’री की तीसरी पीढ़ी के प्रमुख प्रतिनिधि शाइ’र। ख़्वाजा ‘आतिश’ के लाइक़ शागिर्द थे। अफ़ीम का शौक़ था, ख़ुद खाते और मेहमानों को खिलाते। वाजिद अ’ली शाह ने दो सौ रुपए माहवार वज़ीफ़ा बाँध रखा था, जिससे ऐश में गुज़रती थी।
शाम का तख़्लीक़ी इस्तेमाल बहुत मुतनव्वे है। इस का सही अंदाज़ा आप हमारे इस इन्तिख़ाब से लगा सकेंगे कि जिस शाम को हम अपनी आम ज़िंदगी में सिर्फ़ दिन के एक आख़िरी हिस्से के तौर देखते हैं वो किस तौर पर मानी और तसव्वुरात की कसरत को जन्म देती है। ये दिन के उरूज के बाद ज़वाल का इस्तिआरा भी है और इस के बरअक्स सुकून, आफ़ियत और सलामती की अलामत भी। और भी कई दिल-चस्प पहलू इस से वाबस्ता हैं। ये अशआर पढ़िए।
शमा रात भर रौशनी लुटाने के लिए जलती रहती है, सब उस के फ़ैज़ उठाते हैं लेकिन उस के अपने दुख और कर्ब को कोई नहीं समझता। किस तरह से सियाह काली रात उस के ऊपर गुज़रती है उसे कोई नहीं जानता। तख़्लीक़ कारों ने रौशनी के पीछे की उन तमाम अन-कही बातों को ज़बान दी है। ख़याल रहे कि शायरी में शमा और पर्वाना अपने लफ़्ज़ी मानी और माद्दी शक्लों से बहुत आगे निकल जिंदगी की मुतनव्वे सूरतों की अलामत के तौर मुस्तामल हैं।
शाम-ए-ऐशشام عیش
evening of pleasure
Tajalliyat-e-Ishq
शाह अकबर दानापुरी
दीवान
Afsana-e-Ishq
वाजिद अली शाह अख़्तर
मसनवी
As Slam Ai Hind Ke Shah-e-Shaheedan As Salam
कुमार पानीपती
स्वतंत्रता आंदोलन
Deewan-e-Aasi
सय्यद शाह शाहिद अली
Taswwuf Ke Masail Aur Mubahis
मिर्ज़ा सफ़दर अली बेग
सूफीवाद दर्शन
Charag-e-Iman
अननोन ऑथर
मुंशी नवल किशोर के प्रकाशन
Hadees-e-Ishq Dil Resh
सय्यद हामिद महमूद शाह
चिश्तिय्या
Mazhar-e-Ishq
सय्यद शाह मज़हर अली
Deewan-e-Akbar
नक्शबंदिया
Sham-e-Jawani
जोर्ज विलियम रिनाल्ड
नॉवेल / उपन्यास
Nigar-e-Ishq
मोहम्मद अब्दुल ग़नी शाह
Masnavi Mazhar-e-Ishq
Sahifa-e-Ishq
सिकन्दर अली शाह
काव्य संग्रह
Tajalliyat-e-Shaheed-e-Ishq
मौलाना मोहम्मद अल-फ़ारूक़ी इलाहाबादी
Gulshan-e-Rahmat (Faizan-e-Ishq)
सय्यद मोहम्मद जाफर अली (सय्यद शाह सहारुनपूरी)
शाइरी
इक इक पलक पे छाई है महरूमियों की शामज़ब्त-ए-सुख़न की आग में जलते लबों को देख
कुछ तो कहती है सर-ए-शाम समुंदर की हवाकभी साहिल की ख़ुनुक रेत पे जाएँ तो सही
इक पल में ही बतला गईं दम तोड़ती किरनेंवो राज़ जो ऐ 'शाम' न पाया मुझे दिन-भर
यादें खुले किवाड़ ये महकी हुई फ़ज़ाकौन आ रहा है शाम ये ठंडी हवा के ब'अद
किस तरह छोड़ दूँ इस शहर को ऐ मौज-ए-नसीमयहीं जीना है मुझे और यहीं मरना है मुझे
खोए हैं उस के सेहर में ही अहल-ए-कारवाँउस की नज़र जो वक़्त-ए-सफ़र रंग बो गई
कैसी उजड़ी है ये महफ़िल 'ऐश' हंगाम-ए-सहरशम-ए-कुश्ता है कहीं और ख़ाक-ए-परवाना कहीं
कुछ ऐसे की है अदा रस्म-ए-बंदगी मैं नेगुज़ार दी तिरे वा'दे पे ज़िंदगी मैं ने
है 'ऐश' साथ कोई राहबर न हमराहीकटेगी देखिए तन्हा रह-ए-वफ़ा कैसे
न मिलने पर भी उसे 'ऐश' प्यार करता हूँयूँ ऊँचा कर दिया मेआ'र-ए-ज़िंदगी मैं ने
Devoted to the preservation & promotion of Urdu
A Trilingual Treasure of Urdu Words
Online Treasure of Sufi and Sant Poetry
World of Hindi language and literature
The best way to learn Urdu online
Best of Urdu & Hindi Books