शम्अ शायरी
शमा रात भर रौशनी लुटाने के लिए जलती रहती है, सब उस के फ़ैज़ उठाते हैं लेकिन उस के अपने दुख और कर्ब को कोई नहीं समझता। किस तरह से सियाह काली रात उस के ऊपर गुज़रती है उसे कोई नहीं जानता। तख़्लीक़ कारों ने रौशनी के पीछे की उन तमाम अन-कही बातों को ज़बान दी है। ख़याल रहे कि शायरी में शमा और पर्वाना अपने लफ़्ज़ी मानी और माद्दी शक्लों से बहुत आगे निकल जिंदगी की मुतनव्वे सूरतों की अलामत के तौर मुस्तामल हैं।
सब इक चराग़ के परवाने होना चाहते हैं
अजीब लोग हैं दीवाने होना चाहते हैं
होती कहाँ है दिल से जुदा दिल की आरज़ू
जाता कहाँ है शम्अ को परवाना छोड़ कर
तू कहीं हो दिल-ए-दीवाना वहाँ पहुँचेगा
शम्अ होगी जहाँ परवाना वहाँ पहुँचेगा
शम्अ जिस आग में जलती है नुमाइश के लिए
हम उसी आग में गुम-नाम से जल जाते हैं
the fire,that the flame burns in, for all to see
In that very fire I do burn but namelessly
शम्अ माशूक़ों को सिखलाती है तर्ज़-ए-आशिक़ी
जल के परवाने से पहले बुझ के परवाने के बाद
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ख़ुद ही परवाने जल गए वर्ना
शम्अ जलती है रौशनी के लिए
the moths got burned in their own plight
the flame just burns to shed some light
परवानों का तो हश्र जो होना था हो चुका
गुज़री है रात शम्अ पे क्या देखते चलें
यूँ तो जल बुझने में दोनों हैं बराबर लेकिन
वो कहाँ शम्अ में जो आग है परवाने में
मत करो शम्अ कूँ बदनाम जलाती वो नहीं
आप सीं शौक़ पतंगों को है जल जाने का
cast not blame upon the flame it doesn’t burn to sear
the moths are
मैं ढूँढ रहा हूँ मिरी वो शम्अ कहाँ है
जो बज़्म की हर चीज़ को परवाना बना दे
ख़ुद भी जलती है अगर उस को जलाती है ये
कम किसी तरह नहीं शम्अ भी परवाने से
it aslo burns itself if it sears him
the flame is not lesser than the moth in any way
शम्अ पर ख़ून का इल्ज़ाम हो साबित क्यूँ-कर
फूँक दी लाश भी कम्बख़्त ने परवाने की
परवाने आ ही जाएँगे खिंच कर ब-जब्र-ए-इश्क़
महफ़िल में सिर्फ़ शम्अ जलाने की देर है
जाने क्या महफ़िल-ए-परवाना में देखा उस ने
फिर ज़बाँ खुल न सकी शम्अ जो ख़ामोश हुई
परवाने की तपिश ने ख़ुदा जाने कान में
क्या कह दिया कि शम्अ के सर से धुआँ उठा
शम्अ' बुझ कर रह गई परवाना जल कर रह गया
यादगार-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ इक दाग़ दिल पर रह गया
ख़ाक कर देवे जला कर पहले फिर टिसवे बहाए
शम्अ मज्लिस में बड़ी दिल-सोज़ परवाने की है
रात उस की महफ़िल में सर से जल के पाँव तक
शम्अ की पिघल चर्बी उस्तुखाँ निकल आई