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शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

1699 - 1783 | दिल्ली, भारत

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

ग़ज़ल 106

अशआर 233

चाँद से तुझ को जो दे निस्बत सो बे-इंसाफ़ है

चाँद के मुँह पर हैं छाईं तेरा मुखड़ा साफ़ है

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मुद्दत से ख़्वाब में भी नहीं नींद का ख़याल

हैरत में हूँ ये किस का मुझे इंतिज़ार है

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इतना मैं इंतिज़ार किया उस की राह में

जो रफ़्ता रफ़्ता दिल मिरा बीमार हो गया

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कपड़े सफ़ेद धो के जो पहने तो क्या हुआ

धोना वही जो दिल की सियाही को धोइए

तन्हाई से आती नहीं दिन रात मुझे नींद

या-रब मिरा हम-ख़्वाब हम-आग़ोश कहाँ है

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मसनवी 1

 

पुस्तकें 9

 

ऑडियो 6

आब-ए-हयात जा के किसू ने पिया तो क्या

इश्क़ नहीं कोई नहंग है यारो

इश्क़ में पास-ए-जाँ नहीं है दुरुस्त

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