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ग़ज़ल 57
शेर 41
दिल-ए-मुज़्तर से पूछ ऐ रौनक़-ए-बज़्म
मैं ख़ुद आया नहीं लाया गया हूँ
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अब भी इक उम्र पे जीने का न अंदाज़ आया
ज़िंदगी छोड़ दे पीछा मिरा मैं बाज़ आया
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ख़मोशी से मुसीबत और भी संगीन होती है
तड़प ऐ दिल तड़पने से ज़रा तस्कीन होती है
silence only intensifies one's grief
cry out heart and you will find relief
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टैग : ख़ामोशी
रुबाई 24
पुस्तकें 49
चित्र शायरी 5
ढूँडोगे अगर मुल्कों मुल्कों मिलने के नहीं नायाब हैं हम जो याद न आए भूल के फिर ऐ हम-नफ़सो वो ख़्वाब हैं हम
वीडियो 4
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