आलम ख़ुर्शीद
ग़ज़ल 48
शेर 25
रात गए अक्सर दिल के वीरानों में
इक साए का आना जाना होता है
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बहुत सुकून से रहते थे हम अँधेरे में
फ़साद पैदा हुआ रौशनी के आने से
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मैं ने बचपन में अधूरा ख़्वाब देखा था कोई
आज तक मसरूफ़ हूँ उस ख़्वाब की तकमील में
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हाथ पकड़ ले अब भी तेरा हो सकता हूँ मैं
भीड़ बहुत है इस मेले में खो सकता हूँ मैं
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पुस्तकें 9
चित्र शायरी 2
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