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ग़ज़ल
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
ख़ुद हुस्न-ओ-शबाब उन का क्या कम है रक़ीब अपना
जब देखिए अब वो हैं आईना है शाना है
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
आवारा
जैसे मुफ़्लिस की जवानी जैसे बेवा का शबाब
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ