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शेर
हम रू-ब-रू-ए-शम्अ हैं इस इंतिज़ार में
कुछ जाँ परों में आए तो उड़ कर निसार हों
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
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ग़ज़ल
ज़ोम न कीजो शम्अ-रू बज़्म के सोज़ ओ साज़ पर
रखियो नज़र बजा-ए-नाज़ ख़ातिर-ए-पीर-ए-नाज़ पर
साइल देहलवी
ग़ज़ल
मिरे सोज़-ए-दरूँ में सौ तरह के लुत्फ़ हासिल हैं
जलाता हूँ दिलों को याद-ए-यार-ए-शमअ'-रु हो कर